मंगलवार, 19 मई 2009

संगोष्ठी के कुछ चित्र

डॉ प्रदीप कुमार दास और डॉ काना


प्रोफ़ेसर महेन्द्रपाल शर्मा, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली





संगोष्ठी में प्रतिभागी

इक्कीसवीं शताब्दी में भारत अध्ययन में शोध की नई दिशाएं



इक्कीसवीं शताब्दी में भारत अध्ययन में शोध की नई दिशाएं
हंकुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फॉरेन स्टडीज, सियोल, कोरिया के इंस्टिट्यूट ऑफ़ साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज ने १६ मई को एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया। इसका उद्घाटन हंकुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फॉरेन स्टडीज के कुलपति प्रोफ़ेसर पार्क चुल ने किया और सेमिनार का बीज वक्तव्य आई एस एस के निदेशक प्रोफ़ेसर छे ने दिया। इस सेमिनार में कई देशों के विद्वानों ने भाग लिया। इन विद्वानों में प्रमुख थे भारत के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर महेंद्र पाल शर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ कृष्ण मेनन (प्रोफ़ेसर राजीव खन्ना), डॉ वीरेंदर भारद्वाज डॉ प्रदीप कुमार दास और टोकियो विश्वविद्यालय के डॉ काना तोमिजावा और कजुमा नाकामिजो सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी की डॉ हवों कुई ने अपने आलेख पढ़े


हंकुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फॉरेन स्टडीज की प्रोफ़ेसर किम वू जो, प्रोफ़ेसर ली योंग गू , प्रोफ़ेसर लिम जोंग दोंग, डॉ चांग वान किम, डॉ चुन हो ली ने भी इस संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किए इस संगोष्ठी में जहाँ एक ओर भूमंडलीकरण ओर बाजारवाद के दौर में तेजी से बदलते समाज की विभिन्न समस्याओं पर विचार विमर्श किया गया वहीं आज कल के कुछ ज्वलंत मुद्दों पर भी बहस की गयी कुल मिलकर यह संगोष्ठी भारत अध्ययन के क्षेत्र में हो रहे नए अनुसंधानों की ओर प्रतिभागियों और श्रोताओं का ध्यान खींचने में पूर्णतः सफल रही सेमिनार के विषय थे - इक्कीसवी सदी में हिन्दी साहित्येतिहास के पुनर्लेखन की समस्याएं, भारतीय भाषा विज्ञानं की वर्त्तमान प्रवृतियाँ और स्थिति, कृतिम बौद्धिकता इतनी अबौधिक क्यों है, महाभारत से प्रेरित आधुनिक हिन्दी कविता के विशेष सन्दर्भ में वर्त्तमान सामाजिक विवाद और चुनौतियों का अध्ययन, भारतीय राजनीती की वर्तमान अनुसन्धान : लोकतंत्र और विकास के बीच बहस, अट्ठारहवीं शताब्दी के अंत के औरिएन्तलिस्त और भारतीय अध्ययन की दो प्रवृतियाँ दंगों की ज़वाबदेही : नए परिप्रेक्ष्य में भारतीय राजनीती की समझ, दक्षिण एशियाई कला इतिहास के अध्ययन की नई प्रवृतियाँ आदि


संगोष्टी के कुछ चित्र