रविवार, 25 सितंबर 2016

हंडिया और कुत्ता

एक कहावत बहुत पहले सुनी थी कि ‘दो पैसे की हंडिया गयी सो गयी पर कुत्ते की जात तो पहचानी गयी.’ अब न वो हँड़िया बचीं और न उतने कर्मठ कुत्ते जो किसी भी प्रकार की हँड़िया को बहुत आसानी से उठा ले जाया करते थे. आजकल के कुत्ते कमजोर भी हैं और घायल भी या यूँ कहिये कि व्यवस्था से त्रस्त भी और निहायत अव्वल दर्जे के आलसी. चोट लगने अथवा बीमार पड़ने पर किसी डाक्टर को दिखाने भी नहीं जाते और यदि जाते भी हैं तो मनुष्य के पास. किसी कुत्ते के पास नहीं. यानी उन्हें कुत्ते पर तो भरोसा ही नहीं है और है भी तो कुत्तों के डाक्टर इन्सान पर. ये है अपनी जात विशेष पर से विश्वास उठ जाना. केवल इन्सान ही ऐसे हैं जो अपनी जात वालों पर पूरा भरोसा करते हैं. बल्कि कुल-गोत्र वालों पर तो और भी ज्यादा. पर कुत्ते, वे ऐसे नहीं हैं. जात-वात में विश्वास नहीं करते. कुछ दिनों पहले ही मैंने कुत्तों के बारे मैं एक पोस्ट डाली थी. लिखा था कि हमारे क्षेत्र के कुत्ते आजकल लंगड़े हो गए हैं, अगर किसी व्यक्ति ने उन्हें नुकसान पहुँचाया होता तो यह किसी एक या दो के साथ होता. सब के साथ क्यों होता? किसी व्यक्ति अथवा समूह के द्वारा ऐसा किया गया है इसका कोई भौतिक प्रमाण नहीं मिलता. लेकिन जब ऐसी ही स्थिति मैंने अन्य जगहों पर भी देखी तो थोडा शक हुआ कि अवश्य इसकी कोई ठोस वजह तो होनी चाहिए. एक दो नहीं कुत्तों का पूरा झुण्ड का झुण्ड ही अपना एक पैर उठाकर तेजी से भागा जा रहा था. यह देखकर तो मुझे और आश्चर्य हुआ कि उन कुत्तों में जो सबसे आगे और लगभग नेतृत्व की मुद्रा में चल रहा था, वह लंगड़ा नहीं था और जो सबसे पीछे चल रहा था वह भी लंगड़ा नहीं था. वह तो बल्कि अधिक आत्म-विश्वास के साथ आगे के कुत्तों को लगभग खदेड़ते हुए मटक-मटक कर चल रहा था. विश्वास सा नहीं हुआ कि कुत्ता और मटक कर चल रहा है. आजकल तो अच्छे-भले इन्सान को ठीक से चलने की फुर्सत नहीं है और ये कुत्ता. इसका क्या कारण हो सकता है कि पूरे शहर के कुत्ते लंगड़िया गए हैं .....लेकिन एक बात ध्यान देने की है कि लंगड़ेपन के कारण उनकी चाल में एक विशेष प्रकार की तेज़ी या यूं कहिये कि तीव्रता आ गयी है. कल नेहरुप्लेस में तो कुत्तों का और भी अजीब व्यवहार देखने को मिला. यहाँ पर तो हाईटेक मामला था. सभी लंगड़े कुत्ते आगे के केवल दायें पैर को पश्चिम दिशा में एक जैसी ऊंचाई पर उठाकर उत्तर की ओर बिलकुल एक-सी गति के साथ भागे जा रहे थे. मुझे लगा कि इसके पीछे यदि कोई ख़ास वजह है या कोई गोपनीयता है तो उसको सार्वजनिक किया जाना लोकहित में हो सकता है. अनुरोध है कि प्लीज कोई और अर्थ न निकालें. मैं अविधा में लिखना ही पसंद करता हूँ. 

हंडिया और कुत्ता

एक कहावत बहुत पहले सुनी थी कि ‘दो पैसे की हंडिया गयी सो गयी पर कुत्ते की जात तो पहचानी गयी.’ अब न वो हँड़िया बचीं और न उतने कर्मठ कुत्ते जो किसी भी प्रकार की हँड़िया को बहुत आसानी से उठा ले जाया करते थे. आजकल के कुत्ते कमजोर भी हैं और घायल भी या यूँ कहिये कि व्यवस्था से त्रस्त भी और निहायत अव्वल दर्जे के आलसी. चोट लगने अथवा बीमार पड़ने पर किसी डाक्टर को दिखाने भी नहीं जाते और यदि जाते भी हैं तो मनुष्य के पास. किसी कुत्ते के पास नहीं. यानी उन्हें कुत्ते पर तो भरोसा ही नहीं है और है भी तो कुत्तों के डाक्टर इन्सान पर. ये है अपनी जात विशेष पर से विश्वास उठ जाना. केवल इन्सान ही ऐसे हैं जो अपनी जात वालों पर पूरा भरोसा करते हैं. बल्कि कुल-गोत्र वालों पर तो और भी ज्यादा. पर कुत्ते, वे ऐसे नहीं हैं. जात-वात में विश्वास नहीं करते. कुछ दिनों पहले ही मैंने कुत्तों के बारे मैं एक पोस्ट डाली थी. लिखा था कि हमारे क्षेत्र के कुत्ते आजकल लंगड़े हो गए हैं, अगर किसी व्यक्ति ने उन्हें नुकसान पहुँचाया होता तो यह किसी एक या दो के साथ होता. सब के साथ क्यों होता? किसी व्यक्ति अथवा समूह के द्वारा ऐसा किया गया है इसका कोई भौतिक प्रमाण नहीं मिलता. लेकिन जब ऐसी ही स्थिति मैंने अन्य जगहों पर भी देखी तो थोडा शक हुआ कि अवश्य इसकी कोई ठोस वजह तो होनी चाहिए. एक दो नहीं कुत्तों का पूरा झुण्ड का झुण्ड ही अपना एक पैर उठाकर तेजी से भागा जा रहा था. यह देखकर तो मुझे और आश्चर्य हुआ कि उन कुत्तों में जो सबसे आगे और लगभग नेतृत्व की मुद्रा में चल रहा था, वह लंगड़ा नहीं था और जो सबसे पीछे चल रहा था वह भी लंगड़ा नहीं था. वह तो बल्कि अधिक आत्म-विश्वास के साथ आगे के कुत्तों को लगभग खदेड़ते हुए मटक-मटक कर चल रहा था. विश्वास सा नहीं हुआ कि कुत्ता और मटक कर चल रहा है. आजकल तो अच्छे-भले इन्सान को ठीक से चलने की फुर्सत नहीं है और ये कुत्ता. इसका क्या कारण हो सकता है कि पूरे शहर के कुत्ते लंगड़िया गए हैं .....लेकिन एक बात ध्यान देने की है कि लंगड़ेपन के कारण उनकी चाल में एक विशेष प्रकार की तेज़ी या यूं कहिये कि तीव्रता आ गयी है. कल नेहरुप्लेस में तो कुत्तों का और भी अजीब व्यवहार देखने को मिला. यहाँ पर तो हाईटेक मामला था. सभी लंगड़े कुत्ते आगे के केवल दायें पैर को पश्चिम दिशा में एक जैसी ऊंचाई पर उठाकर उत्तर की ओर बिलकुल एक-सी गति के साथ भागे जा रहे थे. मुझे लगा कि इसके पीछे यदि कोई ख़ास वजह है या कोई गोपनीयता है तो उसको सार्वजनिक किया जाना लोकहित में हो सकता है. अनुरोध है कि प्लीज कोई और अर्थ न निकालें. मैं अविधा में लिखना ही पसंद करता हूँ.