बुधवार, 24 जनवरी 2018

अथ बिल्ली कथा

कुछ लोग कुत्ता न पालकर बिल्ली पालते हैं. एक बार में अपने मित्र के रिश्तेदार के घर गया जिनके यहाँ एक बिल्ली सकुटुम्ब रहती थी. गिन तो मैं नहीं सका लेकिन मेरा अनुमान है कि कुलमिलाकर पूरा कुनबा छ-सात का तो रहा होगा. हमारे जाने से और बार-बार बिल्लियों के दस्तक देने से घर के मालिक असहज महसूस कर रहे थे. मैं बिल्लियों के कारण असहज अनुभव कर रहा था. मेरे मित्र हम दोनों के की असहजता के कारण असहज हो रहे थे. निष्कर्षतः सब असहज थे केवल घर की मालकिन के यानी दोस्त के मित्र की पत्नी के,  जिनके कारण बिल्लियाँ घर में अबतक थीं. दोस्त के मित्र का नाम कबीर था जिनकी उम्र लगभग 55 वर्ष के आसपास रही होगी. वापस लौटते समय मित्र ने रास्ते में बताया कि कबीर साहब किसी समय भयंकर बिल्ली विरोधी थे. लेकिन इनकी पत्नी को न जाने कहाँ से प्रेरणा मिली कि ये अपने मायके से एक बिल्ली ले आयीं. वस्तुतः यह शादी का किंचित विलंब से ही सही पर सही समय पर उत्पन्न हुआ ‘आफ्टर इफेक्ट’ था. कारण यह था कि जब कई साल के बाद भी घर में कोई संतान न हुई तो मित्र की घरवाली ने प्राणी-पालन में मन लगाया. मित्र आखिर कैसे, क्यों और कब तक विरोध करते. अंततः पत्नी की बेरहम इच्छा के आगे उनको समझौता करना पड़ा. पत्नी पर तो उनका कोई दबाब न चला, पर अपने दिल पर पत्थर रखकर अपने ऊपर तो दबाब कम से कम बना ही सकते थे. सो उन्होंने बना लिया. इतना कहकर दोस्त चुप हो गया. शायद आगे वाकया या तो उसको पता नहीं था या मैं उसको सुनाने के लिए उपयुक्त पात्र नहीं था. अतः मैंने भी न पूछा. लेकिन दोस्त द्वारा मिली इस जानकारी से मेरे अंदर एक जिज्ञासा बलवती हो गयी कि यदि संभव हो पाए तो दोस्त के मित्र से एक बार और मिला जाय. शीघ्र ही संभावना बनी तो मुलाक़ात हो ही गयी. बात-बात में पता चला कि बिल्ली-चर्चा दोस्त की दुखती रग है. लेकिन इससे क्या? अगर रग है और दुखती रग है तो उसे और दुखाने में हरज ही क्या है? यही दस्तूर भी है. किसी ने कहा भी है कि कुछ खास जानना हो या किसी को चिढाना हो तो उसकी दुखती रग पर हाथ रख दो. अतः मैंने ईमानदारी से अधिक जानने के लिए ही राग को छू दिया. जानने पर प्रस्तुत जानकारी मिली जिसमें मित्र के ज्ञान की छाप मौजूद थी. आप भी सुनिए- अनेक कमियां गिनाने के बात अचानक कुछ यद् आ जाने पर कबीर साहब ने अपनी सबसे ज़िम्मेदार बिल्ली को बुलाया. उन्होंने धीरे से उसके कान में न जाने क्या कहा कि वह बोलने लगी. अविश्वसनीय पर उस बोलती बिल्ली ने दुनिया की सभी बिल्लियों का प्रतिनिधित्व करते हुए बताया कि बिल्ली की अनेक विशेषताएँ हैं। सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि बिल्ली का सबसे पारिवारिक संबंध हैं। वह रिश्ता इतना मजबूती का है कि वह सबकी मौसी है। चाहे उसका कोई राजा हो या न हो, लेकिन फिर भी बिल्ली बिन राजा की रानी है, भले ही चाहे वह खूब सयानी ही क्यों न हो? बिल्ली इतनी लोकप्रिय है कि बिल्ली के नाम पर कैटवॉक होता है जिसको मशहूर मॉडेल्स सम्पन्न करते हैं। यानी अपनी चाल से भी बिल्ली अनुकरणीय है। बिल्ली की आँखें बहुत मार्के की होती हैं इसलिए बिल्ली के नाम पर कैटस आई रखा गया है जिसकी विशेषता है कि वह रात में भी चमकती हैं। बिल्ली प्राणियों में सबसे स्मार्ट होती है और इसीलिए किसी को यदि स्मार्ट कहना हो तो हम कहते हैं, बड़े कैट हो रहे हो? क्या बात है? हाय कैट। बिल्ली ने चूहों की बड़ी-बड़ी समस्यायेँ सुलझाई हैं। उनमें से सबसे बड़ी समस्या चूहों के लिए यह थी कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधेगा, इसका समाधान भी आखिर में बिल्ली ने ही निकाला और आसानी से अपना गला चूहों के सामने कर दिया कि ये लो मेरे प्यारे दोस्तो, ये लो मेरा गला और निडर होकर बांधो मेरे गले में घंटी। मैं कुछ भी नहीं करूंगी. चुपचाप अपने गले में आपकी घंटी बंधवा लूंगी. भले ही मुझे चाहे जो तकलीफ़ क्यों न हो. मैं चाहती हूँ कि जब भी मैं इधर से गुज़रूँ, तो मेरे आने का तुमको पहले से ही पता चल जाय। तुम मानसिक रूप से तैयार हो जाओ। हो सकता है कि अपने बचाव की तैयारी करो और इधर-उधर भागो। इससे तुम्हारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। मैं तो फिर भी किसी तरह अपना काम चला ही लूँगी, लेकिन तुम्हारे स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी तो मेरी भी बनती ही है। आखिर पीढ़ियों से हमारा आपसी संबंध है। इस पुराने संबंध का निर्वाह मैं हर कीमत पर करूंगी। मेरे ही बारे में अक्सर कहा जाता है कि चूहों की रखवाली बिल्ली, अब उन मूर्खों को कौन बताए कि मैं नहीं तो और कौन आपकी रखवाली करेगा? मैं तुमको अच्छी तरह जानती हूँ, तुम्हारी नस-नस पहचानती हूँ, खून की तो बात क्या हड्डी तक का हाल जानती हूँ। मुझसे अधिक तुम्हें कौन जानता है। मैंने चाहे जितने भी चूहे खाये हों, पर ज़रा बताना कि ऐसा काम करने के बाद भी मेरे अलावा कोई और धार्मिक-यात्रा करने गया था। मैं ही तुमसब के कल्याण के लिए अनेक कष्ट सहन करते हुए तीर्थयात्रा पर गयी। कुत्ते को देखो। कभी तुमने सुना है उसके बारे में। सब बुराई करते हैं। कहते हैं, चल कुत्ते, आया है कुत्ता कहीं का। लोगों ने तो उसके साथ यह तक किया कि धोखा देकर  उसकी जात भी पता कर ली. क्या आवश्यकता थी इसकी. क्या मिला लोगों को कुत्ते की जाति पता करके. बेचारे को धोखा देकर केवल और वह भी दो पैसे की खली केवल हँडिया देकर उसकी जात भी पहचान ली गयी। ऐसी गोपनीय बात जिसको वह पीढ़ियों से अपने अन्दर छिपाए हुए था, लोगों ने उसको इतने सस्ते में जान लिया. धोखा किया सरासर उसके साथ. लेकिन फिर भी वह वफादारी करता है. मूर्ख जो ठहरा. मेरी तरह चालाक नहीं है. बेचारा धोबी के घर भी गया तो वहां भी, न घर का रहा न घाट का। कितना वफादार होता है फिर भी दुत्कारा जाता है। मुझे देखो, मेरे बारे में ऐसी कोई बात नहीं है। मेरी वफादारी का न तो कोई उदाहरण दिया जाता है, न ही मेरा मज़ाक उड़ाया जाता है। हाँ, केवल धार्मिक मामलों में ही मुझे टोंट मारा गया था, पर मैंने उसके बाद अबतक बहुत ध्यान रखा है। मैं अब उन ममलों से दूर रहती हूँ. पूर्णत: शाकाहारी हो गयी हूँ। अहिंसावादी हूँ और सबसे बड़ी बात यह है कि मैं प्रेम की पुजारन हूँ। बिल्ले के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती, क्योकि इस भद्र समाज ने जो मूलतः पुरुष प्रधान है, सब बातें केवल मुझे कष्ट पहुँचाने लिए ही कही हैं और मेरे बारे में हकीक़त से परे जाकर मनमानी झूटी-सच्ची कहानियाँ बनाई हैं। यदि ऐसा नहीं है तो क्यों नहीं कभी किसी ने घंटी जैसी खतरनाक और भारी वस्तू बिल्ले के गले में बांधने का सुझाव दिया. आजतक मैंने नहीं सुना कि किसी ने बिल्ला, कुत्ता या भेड़िया के गले में घंटी बाँधने की हिम्मत की हो? यहाँ तक कि शेर के भी नहीं जो कि हमारा ही पूर्वज है. हमें बताया गया है और हम भी ऐसा मानते हैं कि हम उसकी प्रजाति के हैं. इसीलिए हम उसका बहुत आदर करते हैं. तुम तो मुझे यह भी बताओ कि क्यों नहीं बिल्ला कभी हज जैसी पवित्र यात्रा पर गया। उससे तो कोई शिकायत नहीं, फिर मुझसे ही क्यों? मैं तो आखिर गयी भी और ताना भी आजतक मुझे ही मारा जाता है. ये सब बातें स्वयं बिल्ली से सुनकर मैं उनको आपको बताने चल दिया. .......