मेरे पिताजी ने मुझे एक कहानी सुनाई थी. कहानी एक ऐसे आदमी के बारे में थी जो
जीवन पर्यंत लोगों को बात-बेबात परेशान ही करता रहता है. मुखिया था इसलिए लोग
खुलकर उसका विरोध नहीं कर पाते थे. प्रतिदिन किसी न किसी को नाहक कष्ट देता और नयी-नयी
परेशानियाँ पैदा कर देता. कहने का आशय यह कि सब सोचने लगे कि मुखिया के जीवित रहते
तो किसी प्रकार उससे राहत मिल नहीं सकती, उसके मरने पर मिल जाय तो भी जान बचे. खैर
भगवान है तो सबकी सुनता है. उस गाँव के लोगों की भी सुनी. अतः विधि के बनाये विधान
के अनुसार मुखिया के जीवन की सांध्य बेला
आ गयी तो मुखिया ने गाँव के लगभग सभी प्रमुख लोगों को बुलाया. मुखिया ने अपनी
बुझती हुई लेकिन स्पष्ट आवाज में उन प्रमुख लोगों से ज़िन्दगी भर उनको परेशान करते
रहने की बात स्वीकार की. गाँव वाले मुखिया की स्वीकारोक्ति सुनकर मन ही मन बहुत खुश
हुए और रहत की सांस ली. गाँव के लोगों के खिले चेहरे पढ़कर मुखिया को कुछ विशेष
प्रकार की अनुभूति हुई. ऐसी अनुभूति जिसके कारण मुखिया ने एक और फैसला, यानी अंतिम
फैसला किया. कुछ सोचकर गाँव वालों से मुखातिव होकर बोला कि ‘मैंने तुमको सचमुच
बहुत परेशान किया है, बहुत कष्ट दिए हैं. अब मेरे बाद ऐसा सब नहीं होगा. आपसे मेरी
अब एक ही अंतिम इच्छा है. जिसको तुम सब मिलकर पूरा कर दो तो मैं आराम से अंतिम
सांस ले सकूंगा और मरने के बाद मेरी आत्मा को शांति भी मिलेगी.’ गाँव के लोग थोड़ी
देर के लिए तो हतप्रभ रह गए. पर दुष्ट ही सही था तो मुखिया. अतः अपने मुखिया की
अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हो गए. मुखिया का निवेदन इस प्रकार था- ‘मेरे
मरने के बाद तुम लोग शमशान तक मेरे शरीर को घसीटते हुए ले जाना और बीच-बीच में
जूतों से पिटाई भी करना’ इतना सुनते ही गाँव वाले एक दूसरे को देखने लगे पर बोल
कुछ नहीं पाए. मुखिया समझ गया और फिर बोला कि ‘वादा करो कि जैसा मैंने कहा है वैसा
करोगे कि नहीं;. अब गाँव वालों के पास मुखिया की बात मानने के आलावा कोई अन्य चारा
बचा भी नहीं था. अतः आदतन सब पंक्ति में खड़े होकर हाथ जोड़कर बोले कि ‘जैसी आपकी
इच्छा महाराज. वादा करते हैं कि जैसा आप चाहते हैं ठीक वैसा ही करेंगे’. अगले दिन
मुखिया के प्राण निकल गए और जैसा कि प्राण निकल जाने पर आमतौर पर होता है कि आदमी
मर जाता है तो मुखिया भी मर गया. गाँव वालों ने उसके शारीर को अर्थी पर रखा और मुखिया
की अंतिम इच्छा को आदेश मानकर सब लोग उसके शारीर को शमशान भूमि तक घसीटते हुए ले
चले. रास्ते मैं उसके शरीर को जूतों से पीटना न भूलते. अब जिंदा आदमी चाहे कितना
भी शरारती क्यों न हो मरने के बाद वह भी श्रद्धा का पात्र बन ही जाता है सो मुखिया
भी श्रद्धा का पात्र बन गया. लोगों को मालूम नहीं था कि वह जाते-जाते उनका पक्का
इंतजाम कर गया है यानी मरने के बाद गाँव वाले उसके मृत शारीर के साथ जो करेंगे
इसकी सूचना पुलिस को दे गया था. वही हुआ जिसके बारे में गाँव वाले सोच भी नहीं
सकते थे. अभी रचनात्मक कार्यक्रम करते हुए गाँव वाले आधे रास्ते ही पहुंचे थे कि
पुलिस आ गयी और गाँव वालों की हरकत देखकर सबको पकड़कर थाने ले गयी. पिटाई की सो अलग
से. लुटे-पिटे गाँव वाले अपने किये पर पछताते हुए थाने से अपने घर की ओर चले और
रस्ते में यथोचित सुन्दर शब्दों में मुखिया की प्रशंसा करते हुए कहते जाते कि जब जिंदा
था तो परेशान करता ही था मरने के बाद दोगुना परेशान कर गया. ईश्वर उसके साथ है तो
रहे पर ऐसे दुष्ट की आत्मा को शांति कभी न दे. पर झूटी तसल्ली इस बात की थी कि शायद
अगला मुखिया ऐसा न होगा.
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