‘अरी मइया सावन में लइयो बुलाय रोवैगी तेरी
लाडली’
वैसे तो सावन के महीने का विशेष महत्व है लेकिन गाँव
की नवविवाहित लड़कियों के लिए और भी विशेष. विवाह हो जाने के बाद वैसे भी लड़कियां
अपने मायके को बहुत याद करती हैं लेकिन तीज-त्योहारों पर तो और भी. विवाह हो जाने
पर उनको एक नितांत ही नया परिवेश मिलता है जिसमें वे धीरे-धीरे स्वयं को ढालने का
प्रयास करती रहती हैं. ग्रामीण परिवेश में हर अवसर के लिए एक लोकगीत है और उसी अवसर
पर गए जाने पर वह प्रासंगिक भी लगता है. अब तो लोग धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं. जब मैं छोटा था
यानी मेरे बचपन में तो यह गीत सावन के महीने में अवश्य सुनने को मिलता था.
गाँव की ब्याही-कुँवारी लड़कियाँ नीम के पेड़ पर झूला झूलते हुए और एक-दूसरे को
झुलाते हुए, लम्बे-लम्बे झोटे देते हुए यह गीत अक्सर
गाती थीं. मैं खुलती और तल्लीनता से गीत गा रही लड़कियों के चेहरों को
बहुत ध्यान से देखता और गीत के मायने समझने का प्रयास करता. मेरी दिक्कत यह
थी कि गीत को मैं प्रायः स्वयं पर ढालते
हुए बिना कुछ ठीक-ठाक उसको समझे,
भावुक हो जाया करता और अपनी बड़ी बहन जिसका कम उम्र में विवाह हो गया था, उसे याद करने
लगता. वो गांव में होती तब भी और यदि उन दिनों वहां न होती तब भी. अगर वो वहाँ
होती तो रोते हुए उससे लिपट जाता और यदि वह वहाँ न होती तो अपनी माँ से लिपटकर
रोने लगता. माँ को लड़कियों की तरह इस प्रकार मेरा रोना अच्छा न लगता और इसलिए वे
मुझे समझाती तथा कभी-कभी प्यार से
डाँटती. फिर यदि बहन गांव में तबतक न आई होती तो किसी को शीघ्र ही उसको बुलाने
भेजा जाता या बुलाने के लिए सन्देश भेजा जाता. गाँव के रिश्ते उन दिनों बहुत दूर-दूर नहीं हुआ करते थे. अक्सर आस-पास ही होते
थे. सावन में लड़कियां अपनी ससुराल से मायके प्रायः आती है. गाँव की परंपरा के
हिसाब से उनको बुलाया जाता, किसी को उन्हें लेने भेजा जाता. यदि कोई न जा पाए तो मेहमान
को बूरा खाने आने का निमंत्रण भिजवाया जाता और इस बहाने लड़की भी आ जाती. मैं क्योंकि
छोटा था तो ख़ुद बहन की ससुराल उसे लेने जा नहीं सकता था. इसलिए किसी प्रकार सन्देश भेजकर ही बुलाया जाता.
मेरे घर के आगे
नीम के अनेक भारी-भरकम हरे-भरे पेड़ थे. सावन का महीना आते ही पिताजी उनमें से
सबसे मज़बूत पेड़ पर, एक बहुत ही मज़बूत सी रस्सी का झूला डाल दिया
करते. झूला कुछ इस तरह डाला जाता कि एक बार में दो लोग झूल सकें.
पेड़ की मज़बूत शाखा पर एक रस्सी इस तरह लटकाई जाती कि दोनों ओर बिलकुल बराबर हो.
पेड़ पर रस्सी के ऊपर एक कपड़ा भी लगाया जाता ताकि दवाब से रस्सी कट न जाय. पूरे मोहल्ले
की लड़कियाँ आकर बिना किसी रोक-टोक के जब भी मौक़ा लगता झूला झूलतीं. झूले के दोनों ओर के सिरों पर बैठी लड़कियां अपने परों को एक दूसरे के पैरों में
मजबूती से फंसा लेतीं और साथ खड़ी और लम्बे-लम्बे झोटे दे रदी लड़कियों के सुर में
सुर मिलाकर गाती रहतीं. मेरी कोई भूमिका वहां न होती सिवाय इसके कि झूला मेरे घर
के सामने पड़ा था और मेरे नीम के पेड़ों में से सबसे सुन्दर दिखने वाले पेड़ पर. बेटी
को याद करते हुए उसकी तीज के अवसर पर शुभकामनाओं के साथ.
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