कामवाली कई दिन से घर का काम करने नहीं आई. पहले जब
किसी दिन नहीं आती थी तो फोन कर देती थी. हालाँकि फोन करते समय आमतौर पर उसके दो
बहाने होते थे. एक बहाना होता था कि ‘मेरी तबियत ख़राब है’. दूसरा बहाना होता था कि ‘मेरी बेटी की तबियत ख़राब है’. जब वह अपनी तबियत ख़राब बताती है तो उसका स्वर बदलकर
स्वस्थ व्यक्ति से बीमार व्यक्ति के स्वर में बदल जाता है. थोड़ी कराहट जुड़ जाती है
और आवाज़ में हल्का कम्पन-सा आ जाता है. लेकिन जब वह अपनी बेटी की तबियत ख़राब होने
की बात करती है तब उसकी आवाज़ में अचानक बहुत सारा विश्वास और मजबूती आ जाती है.
कुछ इस प्रकार कि मैं किसी तरह भी यह न कह सकूं कि ‘अरे बेटी बीमार है तो दवाई दिलवाकर आ जाओ’. उसकी अपनी बीमारी भी दो तरह की होती है, एक कि ‘मेरा पेट ख़राब है. दूसरा ‘मेरे सिर में बहुत दर्द है और दर्द के मारे मेरा सिर
फटा जा रहा है’. ये ऐसी
बीमारी है कि दोनों ही बीमारियों का पता लगाना मेरे जैसे साधारण बुद्धि वाले किसी
व्यक्ति के लिए संभव नहीं. खैर, जब किसी भी कारण से काम पर न आने के बारे में कामवाली
का फोन आ जाता है तो मैं पहले दुखी और फिर निश्चिन्त हो जाता हूँ कि अब वह नहीं
आएगी तो मैं कुछ अधिक समय तक आराम कर सकता हूँ. क्योंकि जबतक कामवाली घर में रहती
है, लगातार
यह लगा रहता है कि अब क्या तोड़ेगी, अब क्या गिराएगी? सफाई कहाँ करेगी और कहाँ छोड़ेगी आदि आदि. ऐसा भी होता
है कि वह अक्सर किसी न किसी बात पर नाराज़ होकर घर से आती है तो उसका व्यव्हार
बिलकुल बदला हुआ होता है. वैसे वह अब अपनी नाराज़गी कहाँ और कैसे दूर करे? तो उसका क्रोध अधिकांशतः किचिन में बर्तनों और घर के
दरवाज़ों पर उतरता है. कामवाली के अनमनेपन का शिकार होकर लकड़ी के दरवाज़े तो कम आवाज़
करते हैं पर स्टील के दरवाज़े इतनी आवाज़ करते है कि घर सिर पर उठा लेते हैं.
दरवाज़ों के खुलने और बंद होने तथा बर्तनों के धोये जाने के कामवाली के तरीके से
मैं अनुमान लगा लेता हूँ कि उसका आज का मूड कैसा है. उस दिन मैं सोच-समझकर उससे
किसी काम के लिए कहता हूँ. ऐसे अवसरों पर कामवाली कुछ अधिक टेक्नीकल हो जाती है और
ज़रा-सा अतिरिक्त काम बताते ही नियम बताने लगती है यानी कुछ अलिखित नियम-कायदे जो
शायद सभी कामवालियों ने मिलकर बनाये होंगे. जैसे मैंने एक बार उससे कहा कि जब तुम
झाड़ू लगाती ही हो तो दीवार के कोनों को भी साफ़ कर दिया करो. वह तुरंत उत्तर देती
है कि यह अतिरिक्त काम है. शोकेस, बुक सेल्व, मेज, सोफे किचिन स्लेव, गैस चूल्हा, डाइनिंग टेबिल, सेन्ट्रल टेबिल, टीवी ट्रॉली और खिड़की की जाली आदि को
कपड़े या फिर झाड़ू से साफ़ करना अलग से पैसे की अपेक्षा करता है. उसके सिद्धांत में
शामिल है कि चाय पिएगी पर बनाएगी नहीं’. नियम के प्रावधान के अनुसार चाय पीने के बाद अपने
बर्तनों के साथ केवल चाय बनाने का बर्तन साफ़ किया जा सकता है और कुछ नहीं. यदि साथ
में और बर्तन हैं तो उसकी मर्ज़ी से साफ़ होगे. उन्हें साफ़ किये जाने की बहुत
अपेक्षा अष्टमी से न करें. घर को साफ़ करने का उसका अपना तरीका है. सुबह-सुबह घर
में अन्दर आते ही वह सबसे पहले हिदायत देने के अंदाज़ में कहती है कि पीछे बाहर का
दरवाज़ा खुला है कि नहीं. चाहे द्वार पहले से खुला न हो पर वह पूछती अवश्य है.
हलांकि वह स्वयं दरवाज़ा खोल सकती है पर स्वयं कभी नहीं खोलती और न ही खोलना चाहती, शायद इसका भी कोई कारण हो. झाड़ू लगाने की शुरुआत वह
प्रायः घर के बीच वाले कमरे से करती है. उसके बाद किचिन में जाती है और पानी की
टंकी चलाकर लगभग दस या बीस सेकेण्ड तक अपना सीधा हाथ टोंटी के नीचे लगाकर पानी
गिरती रहती है. फिर दूसरा हाथ पानी के नीचे लगाये रखती है. उसके बाद किचिन में
झाड़ू लगाती है. तत्पश्चात अष्टमी (नाम) बाहर वाले कमरे में झाड़ू लगाती है. सबसे
अंत में वह अन्दर वाले यानी मुख्य बेडरूम में जाकर झाड़ू लगाती है. मैं उस समय
अखबार पढ़ रहा होता हूँ. इस बीच अष्टमी मेरे पास आकर जानना चाहती है कि मुख्य बातें
अख़बार में क्या हैं. मैं एक या दो प्रमुख समाचार उसकी रूचि के हिसाब से अष्टमी को
बता देता हूँ. उसका घर मेरे घर से लगभग दो किलोमीटर तो अवश्य होगा. रास्ते में
अपने साथ आने वाली कामवालियों से सुनी हुई कोई न कोई खबर वह मुझे बताती है और
जानना चाहती है कि अख़बार ने वो खबर छापी है कि नहीं. जब उसको पता चलता है कि नहीं
छापी है तो दुखी हो जाती है पर पता चलने पर कि खबर छपी है तो बहुत खुश होती है. एक
बात मुझे अष्टमी की बहुत प्रभावित करती है कि वह घर में पौंछा बहुत शानदार लगाती
है. बहुत ही कलात्मकता के साथ. उसके इस काम में एक रिदम रहती है. जिस दिन अष्टमी
मन घर में पोंछा लगाने का नहीं होता तो वह अपना चेहरा पीड़ित व्यक्ति की भांति लटका
लेती हैं. ऐसी स्थिति में वह काम करने की गति को बहुत धीमा कर देती है और सवाल
ज्यादा करती है. कभी कभी बिजली को और कभी किसी रिश्तेदार के घर जाने को वह पोंछा न
लगाने के लिए बहाना बनाती है. कभी-कभी वह पोंछा लगाने के बदले आराम करना पसंद करती
है और लगभग आधा घंटे के लिए कमरे में लेट जाती है. एक उसकी बहुत अच्छी आदत है कि
वह लेट कम ही होती है. ……झाड़ू लगाने में उसका उतना इंटरेस्ट नहीं होता.
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