आज घर में सुबह-सुबह छ बजे चाय बनाते समय पता चला कि चाय की पत्ती ख़त्म हो गयी है. अब क्या करें. पड़ौस गाँव की तरह ऐसा है नहीं कि चाय की पत्ती, नमक, हल्दी, जीरा, या थोड़ी चीनी आदि आवश्यकता पड़ने पर मांग लिया जाय. हो सकता है कि मांगने पर पड़ौसी दे भी दें पर छवि का क्या होगा. बहुत से काम तो कमबख्त यह छवि ही नहीं करने देती. ध्यान रहे कि छवि घर में किसी का नाम नहीं नहीं है. 'इमेज' के लिए है. आजकल हालत यह है कि 'इमेज ' नहीं है तो कोई मेज उसकी भरपाई नहीं कर सकती. चाहे कितनी भी महँगी क्यों न हो. हैं तो अव्वल दर्जे के बदमाश पर कमबख्त छवि बिगड़ जाय इस कारण ठीक से बदमाशी भी नहीं कर सकते. सड़क-चौराहे पर खड़े होकर कुछ खा नहीं सकते. किसी ने देख लिया तो क्या होगा. गयी इमेज. बहुत मन करता है कि सड़क किनारे खड़े किसी छोले-कुलचे वाले से गर्म-गर्म एक पत्ता बनवाकर वहीं खड़े होकर खाया जाए जहाँ और अनेक सामान्य जन खा रहे हैं ताकि छोले खाते-खाते छोले ख़त्म होने पर कहा जा सके कि 'थोड़े और छोले देना भाई', पर नहीं. चाहे सब सामान ठंडा ही क्यों न हो जाय पर किसी से मंगवाकर कमरा बंद करके छुपकर ही खायेंगे. इमेज का सवाल है. कोई कहेगा कि 'देखिये, कैसे आदमी हैं. छोला-कुलचा खा रहे हैं. जरा इमेज का तो ध्यान रखना चाहिए' जैसे छोला कुलचा न होकर कोई बम हो गया..
खैर छोडिये, मैं तो चाय-पत्ती की बात कर रहा था और सोच रहा था कि हमें पहले से ही कुछ सावधानी रखनी चाहिए ताकि ऐसी स्थिति न आये कि अचानक कोई ज़रूरो सामान घर में ख़त्म हो गया. तभी मुझे पुराना चुटकुलानुमा एक वाकया याद आया जो इस तरह है;
डीटीसी की बस में एक लड़का चढ़ा और उसने कंडक्टर से दो टिकेट मांगे. कंडक्टर को वैसे तो लड़के के मांगने पर दो टिकिट दे देने चाहिए लेकिन यदि वह ऐसा करता तो उसकी उस भारतीय 'इमेज' का क्या होता जिसके अनुसार कोई भी भारतीय किसी से पास गुजरने वाले को भी बिना सवाल-ज़वाब किये जाने ही नहीं देता. भले ही उससे चाहे दूर-दूर का भी ?उसका कोई सम्बन्ध न हो. इसलिए कंडक्टर ने पलटकर पूछ ही लिया कि "दो टिकिट तुम्हें क्यों चाहिय्र? तुम तो अकेले हो."
"एक कहीं खो गया तो?" लड़के ने कहा.
इस पाकर कंडक्टर ने पुनः कहा कि "खो तो दोनों सकते है फिर?"
लड़का भी कहाँ चूकने वाला था. तुरंत बोला कि "मेरे पास बसपास भी तो है. वो कब काम आएगा.?" और मुस्करा दिया.
कंडक्टर को खुद को संभालना मुश्किल हो गया. हिम्मत करके बोला कि "बड़ी सावधानी बरत रहे हो, कहाँ के हो भाई?"
वैसे तो यह तनिक लम्बा सिलसिला है पर कुछ अपरिहार्य कारणवश आगे नहीं लिख सकता. चाय की पत्ती और एतियातन दूध-चीनी लेने जा रहा हूँ. शुभ-प्रभात मित्रो..
खैर छोडिये, मैं तो चाय-पत्ती की बात कर रहा था और सोच रहा था कि हमें पहले से ही कुछ सावधानी रखनी चाहिए ताकि ऐसी स्थिति न आये कि अचानक कोई ज़रूरो सामान घर में ख़त्म हो गया. तभी मुझे पुराना चुटकुलानुमा एक वाकया याद आया जो इस तरह है;
डीटीसी की बस में एक लड़का चढ़ा और उसने कंडक्टर से दो टिकेट मांगे. कंडक्टर को वैसे तो लड़के के मांगने पर दो टिकिट दे देने चाहिए लेकिन यदि वह ऐसा करता तो उसकी उस भारतीय 'इमेज' का क्या होता जिसके अनुसार कोई भी भारतीय किसी से पास गुजरने वाले को भी बिना सवाल-ज़वाब किये जाने ही नहीं देता. भले ही उससे चाहे दूर-दूर का भी ?उसका कोई सम्बन्ध न हो. इसलिए कंडक्टर ने पलटकर पूछ ही लिया कि "दो टिकिट तुम्हें क्यों चाहिय्र? तुम तो अकेले हो."
"एक कहीं खो गया तो?" लड़के ने कहा.
इस पाकर कंडक्टर ने पुनः कहा कि "खो तो दोनों सकते है फिर?"
लड़का भी कहाँ चूकने वाला था. तुरंत बोला कि "मेरे पास बसपास भी तो है. वो कब काम आएगा.?" और मुस्करा दिया.
कंडक्टर को खुद को संभालना मुश्किल हो गया. हिम्मत करके बोला कि "बड़ी सावधानी बरत रहे हो, कहाँ के हो भाई?"
वैसे तो यह तनिक लम्बा सिलसिला है पर कुछ अपरिहार्य कारणवश आगे नहीं लिख सकता. चाय की पत्ती और एतियातन दूध-चीनी लेने जा रहा हूँ. शुभ-प्रभात मित्रो..
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