एक अलग तरह की पोस्ट
कभी-कभी आदमियों के ‘हवेले’ से बाहर निकलकर भैंसों के ‘तबेले’ में भी जाना चाहिए. थोड़ी देर के लिए ही सही शोर-शराबें से बचे रहेंगे. मैं एक दिन वहां गया. इन भैंसों में प्रमुख थीं – भदावरी (उत्तर प्रदेश), मुर्रा (पंजाब), मेहसाना (गुजरात). मैंने टोडा (तमिलनाडु), सुरति (गुजरात), नागपुरी (महाराष्ट्र), जाफराबादी (काठियाबाड़), नीली रावी (पाकिस्तानी) आदि नश्लों की भैंसें नहीं देखीं. हालाँकि इन भैसों के बारे में सुना बहुत है. मेरे पिताजी को भैंसों का बहुत शौक था. वे अच्छी नश्ल की भैंसें रखना पसंद करते थे. उनका कहना था भैंस भले ही दूध कम दे लेकिन भैंस होनी सुन्दर चाहिए. उनके पास दूद-दूर के व्यापारी भैंस बेचने और खरीदाने आते थे. मैंने देखा कि पिताजी को भैंसों की बेहतर जानकारी थी पर वे भैंसों के बेचने और खरीदने में घाटा ही सदैव उठाते थे. दादाजी उनको सदैव सचेत करते थे और कहते थे कि व्यापार का काम हमारा नहीं है. हम तो किसान हैं और किसानी ही हमें करनी चाहिए. ये भैस खरीदना बेचना बंद करो. जो आ गयी, दूध अच्छा देती है तो बस, उसे रहने दो.’ पर पिताजी कहाँ मानने वाले थे. मुझे तो विश्वास नहीं पर मेरे मित्रों ने बताया कि जब वे मेरे पास जामिया में आया करते थे तो चुपके से ओखला जाकर भैंसों के बारे में जानकारी लिया करते थे. हालाँकि भैंस पालना उन्होंने बहुत पहले छोड़ दिया था. उन्हीं से पता चला कि भैंसों की नश्ल और उनकी गुणवत्ता को कैसे पहचाना जा सकता है. वे बताते थे कि भैंसों में नीली रावी (पाकिस्तानी), मुर्रा, मेहसाणा के सींग बहुत सुन्दर लगते हैं और ऊपर को गोलाकार इस तरह मुड़े हुए होते हैं कि उनमें कभी-कभी तीन छल्ले तक बन जाते हैं. लेकिन टोडा, जाफराबादी, भदावरी और नागपुरी भैंसों के सींग लम्बे होते हैं. देशी भैंस वे न जाने किस भैंस को कहते थे लेकिन मैंने गाँव में देखा था कि वह थोड़ी सीधी-सी होती थी. सुरति भैंस दूध अधिक देती है पर कद में अपेक्षाकृत छोटी होती है. हमारे घर में कुन्नी नाम की जो भैंस थी वह 16 किलो दूध प्रतिदिन के हिसाब से दूध देती थी. आठ किलो सुबह और आठ किलो शाम को. मेरी माताजी को उस भैंस के ‘कटिया’ (पड़िया) देने का बड़ा इंतजार रहा करता था. चौथी बार में उसने कटिया/पड़िया दी जो उससे भी अधिक खूबसूरत निकली. मैं और मेरे घर में भी गाय को कभी पसंद नहीं किया गया और न ही गाय के दूध को. मेरी माताजी को गाय के दूध में से अजीब-सी आया करती थी. वे कहती थीं कि ‘गाय के दूध में एक अलग तरह की गंध होती है जो भैंस के दूध से भिन्न होती है. दूध भी गाया का पतला होता है’. मुझे लगता था कि शायद जिस भैंस की नश्ल का कोई पता न चले उसको लोग देशी कह देते थे, हालांकि सभी भैसें भारतीय ही हैं और जहाँ तक मेरी जानकारी है भैंसें भारत में ही अधिक पायी जाती हैं. विदेशों में मैंने भैंसें नहीं देखीं, पर सोचता हूँ कि यदि अंग्रेजी में ‘बफेलो’ शब्द है तो दुनिया के किसी अन्य हिस्से में भैंस भी होती ही होगी. लेकिन मुझको शक है.
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