कल मैं अपने एक पुराने मित्र के घर गया था तो एक बहुत पुराना टीवी सेट दिखाई दिया. उसे देखकर
मुझे आरम्भ में देखे अनेक तरह के टीवी सेट याद आ गए. आमतौर से सभी ब्लेक एंड
व्हाइट में हुआ करते थे 1982 में एसियन गेम्स में रंगीन समाचार प्रसारित किये जाने
तक. कुछ आरंभिक टीवी सेट तो शटर लगे केस के अन्दर रखे होते थे और उस पर भी एक सुन्दर
कपडे का कवर रखा होता था. टीवी, रेडियो,
फ्रिज, टेलीफोन, मोटर साइकिल-स्कूटर आदि वालों के पडौसियों से अच्छे सम्बन्ध हुआ
करते थे. दूरदर्शन के आरंभिक विकास की चर्चा चली तो वह दौर याद आया जब दूरदर्शन पर
पहली बार सीरियल आना शुरू हुए थे. जहाँ तक मेरी जानकारी है उस समय के सबसे पोपुलर
प्रोग्राम ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ हुआ करते थे. गाँव में टेलीविजन जा ही चुका था और
मेरे पिताजी ने ‘रामायण’ देखने के लिए मुझसे टीवी मंगवाया था. इस निमित्त मै अपने पिताजी
की सेवार्थ 14 इंच का ब्लेक एंड व्हाइट टीवी सेट खरीदकर ले गया था. घर के ऊपर एक ऊँचा-सा
एंटीना लगाया गया. सिग्नल अच्छा आए इस कारण एंटीना इतना ऊँचा लगाया गया था कि उसको
तीन ओर से रारों द्वारा बाँधा गया था. उस एंटीना की आकृति कपड़े सुखाने के लिए
घरों में आजकल बहुत पोपुलर होते जा रहे जहाजनुमा हेंगर की तरह होती थी. हवा के तेज
प्रवाह से कहिए या बंदरों की कृपा से उस एंटीना का एन एंगेल की दिशा अक्सर बदल
जाती थी. उन दिनों आज की भांति 24 घंटे
के कार्यक्रम तो आते नहीं थे. रामायण, महाभारत, फिल्म अथवा चित्रहार आदि ही अधिकांशतः
देखे जाते थे. उस एंटीना की एक खासियत थी कि जब भी कोई कार्यक्रम देखते उससे थोड़ी
देर पहले छत पर जाकर एंटीना की दिशा को पिक्चर क्वालिटी के हिसाब से दाएँ या बाएँ
घुमाया जाता. यह काम घर या पड़ौस का कोई वीर बालक को ही सौंपा जाता. वह वीरबालक बड़े
उत्साह से दौड़ता हुआ छत पर जाता और एंटीना की दिशा को अपेक्षित दिशा में धीरे-से घुमाता.
नीचे बैठे दर्शक बरामदे में खड़े एक और बालक को सन्देश देते कि ‘अभी थोड़ा और, अभी
थोड़ा और, ज़रा-सा और बस-बस-बस. ऊपर गया हुआ बालक नीचे उतरने से पहले पूछ लेता कि हो
गया ठीक? पिक्चर ठीक है अब? ऐसा अधिकांशतः सब जगह किया जाता. यहाँ तक कि शहरों में
भी आंधी या बन्दर कृपा से अक्सर ऐसी-ही स्थिति पैदा हो जाती. धन्य हो केबिल और दिस
एंटीना का कि समस्या का स्थायी हल निकल आया.
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