जामिया
के सामने जो सड़क है वह एक ओर को होली फॅमिली अस्पताल के सामने से निकलकर सराय
जुलेना होती हुई मथुरा रोड में मिल जाती है और उसी तरफ को उसका एक भाग फोर्टिस
एस्कॉर्ट्स और सुखदेव विहार होता हुआ ओवर ब्रिज के बराबर से निकलता हुआ मथुरा रोड
में मिल जाता है. दूसरी ओर को जाती हुई वही सड़क बटला हॉउस कोलोनी के सामने से होती
हुई एक ओर को ओखला बैराज को चली जाती है और दूसरी तरफ अबुल फज़ल एन्क्लेव के सामने
से यमुना के किनारे-किनारे कालिंदी कुञ्ज होती हुई नॉएडा चली जाती है.बटला हाउस के
सामने से निकलने वाली सड़क जाकिर नगर से गुज़रती हुई एक ओर को जोगाबाई और जोगाबाई
एक्सटेंशान को छोड़कर आगे जाकर न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के अन्दर से होती हुई,
खिजराबाद के सामने से मुड़कर, तैमूरनगर होती हुई जुलैना-महारानीबाग वाली सड़क में
मिल जाती है. जामिया के सामने से गुज़रती हुई सड़क जामिया के स्कूल के सामने से थोडी
दूर आगे जाकर दो हिस्सों में बंट जाती है. दायें ओर को जाने वाली सड़क आगे जाकर
तिकोना पार्क पर पुनः दो भागों में बंट जाती है जो एक ओर तो ओखला हैड कहे जाने
वाले स्थान से होती हुई अबुल फज़ल जाने वाली सड़क में ही मिल जाती है और दूसरी ओर
टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज तक जाकर पुनः बाएं हाथ को मुड़कर जामिया के अकादमिक कॉलेज के
सामने से फिर एक और बार मुड़कर ओखला हैड जाने वाली मुख्य सड़क में ही आकर मिल जाती
है. तिकोना पार्क से ही उसकी एक शाखा नूरनगर, ओखला विहार, जौहरी फॉर्म्स और अन्य
ऐसी ही कालोनियों की ओर चली जाती है. उसी का एक भाग ओखला विहार से होकर जसोला जनता
क्वार्टर्स के सामने से होकर एक और को ओखला सीवेज डिस्पोजल क्षेत्र से गुज़रता हुआ
पुनः मथुरा रोड में मिल जाता है और दूसरा जसोला होते हुए डीडीए फ्लेट्स और दिल्ली
मेट्रो के सहारे-सहारे कालिंदी कुञ्ज से होकर जाने वाली दिल्ली नॉएडा सड़क में मिल
जाता है. सडकों का यह विवरण अभी अधूरा है. लिखा इसलिए कि मैं जामिया के आसपास की
इन सड़कों से गुज़रा हूँ और अब आसानी यह है कि बिना मथुरा रोड पर आये इन रास्तों से
सरिता विहार से जामिया जाना आसान हो गया है. जहाँ से होकर जाने में मुख्य सड़कों के
ट्रैफिक जाम से बचा जा सकता है. बहुत कम लोग अब जानते हैं कि ओखला गाँव अब भी है, जहाँ
पुराने निवासी रहते हैं जिनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों हैं. वहां कुछ दुकानों से
मैं अक्सर सामान खरीदता था. ‘नगीना स्टोर’ पहले स्टोर कहे जाने वाले स्थान पर था
जो अब नहीं है और वाही पुराना ‘नगीना स्टोर’ अब नूरनगर में है. एक केवल की ग्रोसरी
की दूकान होती थी जो अब भी है. एक छावड़ा स्टोर भी था जो अब भी है और एक दवाओं की
दूकान थी जो बहुत पहले भी दवाइयां खरीदने पर मुझे कुछ रियायत देता था. ओखला हैड पर
पहले अनेक होटल हुआ करते थे जिनमें से कुछ अब बंद हो गए हैं. उन होटलों के सामने
एक रामलीला मैदान भी होता था जहाँ मैं अपने बच्चों के साठ अनेक बार रामलीला देखने
और दशहरे के दिन पुतले जलते देखने जाया करता था. वहीं पर मेरे एक बहुत ही प्रिय
शिष्य राजेश कुमार का घर था जो मुझे प्रायः बुला ले जाता था. अब राजेश वहां नहीं
रहता. वह मेरे और ओखला के बीच एक बहुत बड़ा लिंक था. ....