गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

मित्र उवाच

मित्र-उवाच
मित्र का घर में मन नहीं लगता. मैंने कहा कि ‘यार यह बताओ कि मन है क्या, जो नहीं लगता?’
मित्र बोले कि ‘मन क्या है, यह बताया नहीं जा सकता. इसको तो केवल महसूस किया जा सकता है’.
मैंने कहा कि ‘कैसे महसूस करूं? जरा प्रकाश डालें.’
मित्र कहने लगे कि ‘आप चाहे जैसे महसूस करें या करना चाहें, पर अभी उतना नहीं कर पायेंगे. जितना अवकाश प्राप्त करने पर.’
मैंने कहा कि ‘ऐसा क्यों?’
इस पर वे कहने लगे कि ‘अवकाश प्राप्त होक के बाद यानी रिटायर होने लके बाद आप घर पर ज्यादा रहेंगे और घर वाले, आपको उतना समय घर पर देखने के आदि हैं नहीं. तब आपके हर एक्शन पार टोकेंगे और आप भी. दोनों एक दुसरे की बात का बुरा मानेंगे पर कहेंगे कुछ नहीं. तनाव बढेगा तो उसको दूर करने के लिए आपको ही क़ुरबानी देनी होगी.’
मैंने कहा कि ‘क़ुरबानी?’
वे मेरी चिंता का भाव समझ गए. तुरंत संभल गए और बोले कि ‘यार, सच वाली क़ुरबानी नहीं बल्कि अपनी मौजूदगी की को घर में कम करके बाहर रहने की क़ुरबानी.’
मैंने कहा कि यार पहेली मत ब्झाओ और साफ-साफ़ समझाओ कि क्या बताना चाहते हो?’
बारिश बहुत तेज़ हो रही थी. मैं तो वैसे भी नहीं भीगता पर सर्दी में तो भीगने का मन हरगिज़ नहीं था. इसलिए मित्र को अपनी कार में बैठाया और एक रेस्तरां पर ले गया. जहाँ जगह मिली बैत्ढ़ गया और दोस्त को गाजर का गरमागरम हलवा और पनीर के चटपटे पकडे खिलवाये. दोस्त का दुखी मन ठीक करना जो था. सबकुछ खा पी लेने के बाद मित्र ने घोषणा की कि ‘आप जैसा समझ रहे हैं ऐसा कुछ भी नहीं है. वह तो मेरी बात आपको बताने का तरीका था. दरअसल मैंने अपने कमरे में न तो एसी लगवाया है और न ही हीटर. पुराना समाजवादी जो हूँ.’
मैंने मित्र को अपनी आँख पर लगा चश्मा हटाकर ध्यान से देखा. कुछ कहने वाला ही था कि मित्र ने आकाशवाणी की. ‘अरे इसमें सोचने की कोई बात नहीं है. घर में सबकुछ है पर घरवालों के लिए. मैं तो ज्यादा बहर ही रहता था. पड़ौस की मार्किट में कुछ दुकानदारों से दोस्ती कर ली थी. आज भी है. सबने अपने यहाँ एसी लगा रखे हैं. समाचार, क्रिकेट मैच, और कोई पसंदीदा प्रोग्राम वाहीन बैठकर देखता हूँ. उनको ज्ञान देता हूँ और वे खातिर करते रहते हैं. दोस्त यह है. तुम क्या जानो. आज तेज़ बारिश में मित्र की अनुभवी बातें सुनकर मेरी हालत ऐसी हो गयी कि ‘मुझे काटो तो खून ही खून.’ 

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