शनिवार, 9 नवंबर 2019

बुरी नज़र वाले

जब कोई नया घर बनवाता है तो पूरा ध्यान रखता है कि किसी की बुरी नज़र उसके नए मकान पर न लग जाए, इसके लिए अनेक बार किसी हंडिया, गत्ते या बर्तन पर एक काला-सा अजीब तरह का डरावना चेहरा बनाकर इस प्रकार लगा दिया जाता है कि सबको दूर से ही वह दिखाई दे और उस देखने वाले की बुरी नज़र मकान पर न पड़े. लोगों की बुरी नज़र से बचने के लिए बच्चों को उनके चहरे पर एक ओर को काला टीका लगा दिया जाता है. ट्रकों और बसों पर उनके पीछे प्रायः एक पुराना जूता लटका रहता है. आजकल लोग एक सीडी किसी मज़बूत धागे में बांधकर लटका देते हैं शायद इसीलिए ताकि बुरी नज़र प्रतिबिंबित होकर इधर-उधर छिटक जाए. गाँव में भी घर के बाहर बुरी नज़र से बचने के लिए कोई बहुत पुराना कपड़ा या मिट्टी का बर्तन लटका दिया जाता था. नज़र तो लोगों की पशुओं तक पर लग जाती थी पर नहीं मालूम कि पशु नज़र से बचने के लिए स्वयं क्या करते होंगे. यदि कोई कुछ कर सकता था तो उनका मालिक जो अपने पशु को लोगों की बुरी नज़र से बचाने के लिए अन्य उपायों के अलावा एक गन्डा, ताबीज़ आदि बनवाकर उनके गले में उसी तरह लटका दिया करता था जैसे कि बच्चों के गले में. मैंने देहात में कभी-कभी महिलाओं को भैंस या बैल के सिर पर पुराना जूता अथवा चप्पल घुमाकर उस पर पड़ी नज़र उतारते देखा है. उस समय पशु चौकन्ना होकर एकटक देखता रहता था. मैंने तो गाँव में पशुओं पर और विशेष रूप से भैसों पर भूत का साया आने की बात भी सुनी है. जब कोई भैंस किसी दिन दूध न दे अथवा अचानक दूध देना बंद कर दे तो यह माना जाता था कि उस पर किसी प्रेतात्मा का साया पड़ गया है. आमतौर पर तो वह प्रेतात्मा पड़ौस की ही असमय गुज़र गयी कोई महिला या असमय गुज़रा हुआ पुरुष हुआ करता था. वाही मुख्या भूत हुआ करता था. पर आश्चर्य की बात यह थी कि किसी मोहल्ले का भूत दूसरे मोहल्ले में नहीं जाता था. भूतों के भी क्षेत्र थे और भूतत्व कर्म के अपने-अपने ढंग होते थे. मसलन भूत लिंगभेद मानते थे. यानी महिला भूत महिला पर और पुरुष भूत पुरुष पर ही आता था. हालाँकि इसके आपवाद भी होते थे पर कम. उस दुनिया में भी तो लोग हममें से ही जाते हैं. खैर, ऐसी स्थिति में गाँव के किसी ऐसे आदमी को बुलाया जाता था जिसे भूतों का विशेषज्ञ माना जाता था. ऐसा आदमी जिसको भूत-प्रेत की गतिविधियों का ज्ञान होता था वह ज्यादातर तो महिलाओं पर आये भूत को सफलतापूर्वक उतारने का कौशल रखता था पर पशुओं पर भी उसको दक्षता हासिल थी. हर गाँव में एक-दो इस तरह के लोग मिल जाते थे जिनको ‘भगत’ या ‘भूत-उतारा’ अथवा ऐसे ही किसी नाम से पुकारा जाता था. मैंने कई बार उन भगतों के किसी पीड़ित आदमी द्वारा पीटे जाने की बात भी नहीं सुनी थी.

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