शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

श्वान प्रकरण

प्रमाण के लिए बता दूँ कि नीचे दी जा रही उनकी तस्वीर जिनके विषय में मैं कुछ जानकारी आपसे शेयर करने जा रहा हूँ, मेरे घर के सामने की है और उसमें दिखाई दे रहा कार का पिछला टायर मेरी पुरानी मारुति जेन कार का है। ये मेरी ओर देख रहे हैं क्योंकि मेरे हाथ में iPad है और जिसके बारे में संभवत: ये जानते हैं। आपको यह जानकर कैसा लगेगा कहना तो मुश्किल है पर एक बात स्पष्ट है कि तस्वीर में दिखाई दे रहे ये सज्जन वैसे नहीं हैं जैसा आप देख रहे हैं या फिर सोच रहे हैं. यानी दिखने में ज़रूर यह कुत्ते जैसे हैं पर निश्चित जानिए कि कुत्ता नहीं है. दरअसल कुत्ते की परंपरागत अवधारणा में और विषय-विशेषज्ञों की दृष्टि में भी किसी कुत्ते में जो गुण होने चाहिए, इनमें शक्ल के अलावा ऐसा कुछ नहीं है. न तो ये चीखते-चिल्लाते है, न भोंकते हैं, न अन्य कुत्तों की भांति किसी खाद्य वस्तु के लिए लालायित रहते हैं, न चाट-विद्या में इनकी कोई रूचि है और न ही काट-विद्या में. किसी पहुंचे हुए संत की भांति रहते हैं और कभी कुत्तों की तरफ मुंह उठाकर भी नहीं देखते. कहाँ छुप जाते हैं नहीं कह सकता, लेकिन इतना सच है कि मेरे घर के सामने उस समय आते हैं जब ब्राउनी नहीं होती (एक फीमेल डॉग का नाम जिससे इनका सैद्धांतिक वैर है और जो इनको देखते ही भम्भोर डालती है. फीमेल डॉग इसलिये कहा कि ब्राउनी की सज्जनता देखकर मुझे उसे कुतिया कहना अच्छा नहीं लगा. माफ़ करें). इनका मौजूदा यह ताज़ा पोज़ मलाई लगी ब्रेड मिलने से पहले का है. ये ब्रेड के लिए लगभग 10 या 15 मिनट तक भी इंतजार कर लेते हैं पर सज्जनता के साथ, किसी लोभ भावना के तहत नहीं. ये कभी नहीं बोलते या मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि मैंने इनकी आवाज़ को कभी नहीं सुना. यहाँ तक कि कालोनी में किसी ने भी इनकी आवाज को नहीं सुना. पता नहीं कुत्तों की भांति बोलते हैं या इंसानों की भांति. कोई कह रहा था कि ये हालत तब बनती है जब किसी कुत्ते के कुत्तागत गुण इन्सानगत हो जाएँ. अब पता चले तो प्रयास भी किया जाय. वर्ना ये ऐसे ही रह जायेंगे ओर वो वैसे ही. खैर जैसी दुनिया बनाने वाले की मर्ज़ी.

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