शनिवार, 22 दिसंबर 2018

सन्नाटा और साथी

कल अपने मित्र के साथ किसी के यहाँ एक कार्यक्रम में गया तो खाने में रायता भी बनाया गया था. मुझे क्योंकि अनुभव था इसलिए जब रायता देखा तो चौंका. स्वाद का थोडा लोभ भी था पर थोडा चौंका इसलिए कि सन्नाटा बहुत मारक होता था. सामने वाला दर्शनीय ‘आइटम’ केवल रायता मात्र नहीं था बल्कि पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में ब्याह-शादियों या ऐसे ही समारोहों के अवसर पर परोसे जाने वाले भोजन का अनिवार्य हिस्सा रहने वाला ‘सन्नाटा’ था और उसी की तरह प्रभावकारी भी. सन्नाटा बनाने की प्रक्रिया कुछ इस तरह है कि देहात में शादी या समारोह के लगभग पंद्रह दिन पहले से छाछ एकत्रित करना शुरू कर देते थे. गर्मिंयों के मौसम में तो इतने दिन रहने के बाद वह छाछ अत्यधिक खट्टी हो जाती थी, किसी अम्ल की तरह. उसके बाद तेज़ नमक और ढेर सारी तेज़ मिर्चें डालकर उस मट्ठे को अच्छी तरह जीरे और हींग के द्वारा छोंक लगाकर ‘धुमार’ दिया जाता था. इस तैयार माल का देहात में उन दिनों बहुत आकर्षण हुआ करता था. पहले तो लोग कई गिलास ‘सूंत’ जाते थे पर अब हो सकता है कि आजकल लोग पचा भी न पायें. लोग कहते थे कि इसके सेवन से आद्द्मी खाना कम खता है और पानी अधिक पीता है. अब आजकल कुल्हड़ तो रहे नहीं, फैशन का हिस्सा बन चुके हैं, पर किसी ज़माने में कुल्हड़ तथा सकोरे खाने के समय पत्तल का अनिवार्य भाग हुआ करते थे. धीरे-धीरे कागज और प्लास्टिक की प्लेटों और गिलासों ने उन्हें लगभग गायब ही कर दिया और उसी के साथ-साथ गायब हो गयी कुम्हारों की आमदनी. आधुनिक विकास का एक रूप यह भी है. खैर, मैं सन्नाटे की बात कर रहा था. ‘सन्नाटा’ नाम शायद रायते के पेट में जाने के त्वरित ‘एक्शन’ के कारण पड़ा है. पीते ही यह ‘सन्न’ करता हुआ निकल जाता है और आपकी सभी इन्द्रियों को अचानक जागृत कर देता है. यानी छाछ या मट्ठे से बने इस द्रव्य का एक घूँट लेते ही आपका हाथ स्वभावतः पानी के गिलास की ओर जाना लाज़मी है. पानी पीते ही आप पेट की आवश्यकता और मुंह की शांति के लिए पुनः खाने का एकाध कौर मुंह में डालेंगे, इसके बाद मुंह का जायका बनाने के लिए फिर सन्नाटे का पहले से थोडा हल्का घूँट लेंगे और मुंह खाली होते ही सन्नाटे के कारण पैदा हुई मुंह की जलन शांत करने के लिए इस बार पहले से ज्यादा पानी पीयेंगे. थोडा लड्डू खायेंगे, मुंह मीठा करने और मिर्चों का असर कम करने के लिए. कोई देखे या न देखे लेकिन तेजी से घटित हो रही आपकी इस खाद्य-प्रक्रिया में किसी तरह का अंतर नहीं आएगा. मिर्चों के प्रभाव से बना तेज-तर्रार सन्नाटा, भयंकर चीनी से भरे लड्डू और बर्फ पड़े पानी को पी-पीकर आप अपना पेट इतना भर चुके होंगे कि बाकी कुछ भी खाने के लिए आपके पेट में जगह शेष न रहेगी. मेरा हाल जो हुआ सो हुआ पर मित्र का बहुत बुरा हाल तो उससे भी बुरा हुआ. क्योंकि मिठाई मैं पसंद नहीं करता, बर्फ का पानी कभी पीता ही नहीं. अब बचा सन्नाटा तो केवल स्वाद के लिए थोडा-सा ही लिया. क्योंकि बाद में होने वाले उसके असर के बारे में मैं जानता था. लेकिन मेरे साथी की आदत और किंचित लोभ के कारण सन्नाटे का असर उनपर कुछ ज्यादा ही हो गया. वैसे भी लड्डू और सन्नाटा उन्होंने बहुत लिया ही था. मैं सन्नाटे के बारे में उनको सचेत तो करना चाहता था पर रुक गया. मैंने सोचा कि भोजन के बीच में उनका ध्यान-भग्न नहीं करना चाहिए. वैसे भी ‘भोजन भट्ट’ होने के कारण वे मेरी कहाँ सुनने वाले थे. इसलिए उनको भरपूर आनंद लेने दिया. सन्नाटे का स्वाद पहली बार ले रहे थे. उनको अच्छा भी लगा इस कारण सचमुच ले गए. और भरपूर भी. परिणामस्वरूप असर होना ही था. सुबह-सुबह उनका फोन आया था. सोफा और बाथरूम के बीच चक्कर लगा रहे हैं. अब लगता है दो या तीन दिन तक सन्नाटे का असर रहने वाला है. पहले तो कभी किया नहीं लेकिन अब कहते हैं कि ‘पश्चाताप आज बहुत हो रहा है’. 

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