मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

प्रोफ़ेसर त्रिशंकु

एक लम्बे अंतराल के बाद कल न चाहते हुए भी त्रिशंकु जी दिखाई दिए. न जाने अबतक कहाँ छिपे हुए थे. प्रोफेसर विट्ठलनाथ ‘त्रिशंकु’ आधुनिक परंपरा के आचार्य हैं. देखने में बिलकुल लघुमानव की तरह. शायद उन दिनों विजयदेव नारायण साही उस निबंध को लिख रहे होंगे जिन दिनों श्री वल्लभनाथ का जन्म हुआ था या वल्लभनाथ के माता-पिता ने भविष्य के गर्भ में छिपी लेकिन ऐतिहासिक महत्व प्राप्त करने की सम्भावना वाली अपनी संतान के बारे में कल्पना की होगी. उनके बचपन के बारे में तो कुछ भी कहना आज संभव नहीं है क्योंकि उनका बचपन एक किवदंती की भांति है जिसे केवल उनके माता-पिता ने देखा था और वे जन्म के अनुक्रम के हिसाब से अपने तीसरे बेटे को खलनायकी से भरी इस दुनिया में न जाने किसके हवाले करके बैकुंठलोक सिधार गए. बालत्रिशंकु ने स्वयं भी अपना बचपन उस तरह नाहीं देखा था जैसा वे देखना चाहते थे और यदि कुछ देखा भी होगा तो प्रो. त्रिशंकु उसे अब याद नहीं करना चाहते. कारण यह है कि वे अपने बचपन की खट्टी-खट्टी यादों में अब वे लौटना नहीं चाहते. वैसे देखा जाय तो ज्ञान प्राप्ति के दिनों में तो कष्टों में बीता उनका जीवन ही उनकी सबसे बड़ी पूँजी था, उनका संबल था पर जैसे ही उनको ब्रह्म-ज्ञान मिला, सत्य का आभास हुआ अथवा परमसत्य का इलहाम हुआ तो उनका कष्टों से भरा वही बेशकीमती अतीत ही उनके लिए समस्या बन गया. न जाने क्यों अब वे उसको किसी नव धनाड्य – नए-नए बने धनवान व्यक्ति - की भांति बिसरा देना चाहते थे. परिणामस्वरूप जो भी व्यक्ति उनके उस अतीत की याद दिलाता उसको वे बेहद नापसंद करते. उनके पूर्व परिचित और मुसीबतों में साथी रहे लोग और खासकर वो जो उन्हें पुराने चश्मे से देखते थे, बिलकुल नहीं भाते थे. ऐसे लोगों से बचने के लिए प्रो. विट्ठलनाथ ने अपना पता भी बदल दिया, फोन नंबर बदल दिया, यहाँ तक कि अपना पुराना फोन यानी फोनयंत्र तक बदल दिया. फोन डायरेक्टरी तो वे कब की बदल चुके थे बल्कि उसको जल समाधि दे चुके थे. मैंने ऐसा पहला चरित्र देखा कि तरक्की के साथ-साथ जिसकी शक्ल और अक्ल दोनों बदल गए हों. पुरानी स्मृतियों को वे अपने पुराने कस्बे में घर के समीप से निकलने वाली किसी गंगनहर में बहा आये थे और नयी स्मृतियों के पीछे दौड़ लगाने लगे थे. परिणामस्वरूप नए शहर, नयी नौकरी, नए लोगों और नए विचारों में रच-बसकर वे खुद भी नित नूतन होते गए. सांसारिक और अलौकिक बौद्धिक सम्पदा से संपन्न परम तत्व ज्ञानी. परम स्वतंत्र और नंगे सिर. मतलब कि ‘परम स्वतंत्र न सिर पर कोई’ जैसा भाव लिए हुए. किसी का हाथ तो क्या वह गाँधी टोपी तक जिसके अन्दर से सर्दी के मौसम में केवल उनकी आँखें ही दिखाई देती थीं, उन्होंने अपने सिर पर न रहने दी. किसी समय वह टोपी ही उनकी पहचान हुआ करती थी. जिस किसी ने उनको देखा होगा वह वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के भूतपूर्व स्पिनर लैरी गोम्स की पुरानी तस्वीर देखकर उनके प्राचीन रूप का अंदाज बड़ी आसानी से लगा सकता है. उनके गाल और बाल दोनों ठीक गोम्स की तरह ही हुआ करते थे. अब शक्ल और अक्ल दोनों बिगड़ गयी हैं. प्रतिष्ठित भारतीय विद्वानों में से तो किसी से उनकी तुलना नहीं की जा सकती पर विदेशी आचार्यों में भी किसी से उनकी उपमा देने के लिए तलाश चल रही है. ज्ञान के भार से इतने गंभीर हो गए है कि किसी को देख ही नहीं पाते. कंधे इतने झुके हुए कि किसी भी तरह का कोई हल्का-सा थैला भी वहां स्थान नहीं पा सकता, आँखे छोटी पर नीचे झुकी हुई जैसे ज़मीन के अन्दर का सम्पूर्ण रहस्य जानने को उद्यत हों. एक हाथ में अपनी दाहिनी तरफ सीने से लगाकर ले जाई जा रही आलोचना की चार-पांच भारी-भारी पुस्तकें जिनके शीर्षक देखने और उनको पढने में ही किसी विद्यार्थी को आधा घंटा लग जाए. साथ में लिए हुए कक्षा में पहुँचते हैं. कभी नहीं हँसते और किसी समूह में तो कदापि नहीं लेकिन सुना है कि वे अकेले में कमरा बंद करके मुस्कराते हैं. अगर मान लिया जाय कि आचार्य सचमुच मुस्कराते हैं तो दुनिया के पहले विद्वान व्यक्तित्व होंगे जो मुस्कराते हैं तो आवाज करते हैं. उनको देखकर और उनसे बात करके आपको लग सकता है कि जितना उनको पढना था या फिर पढने की जितनी सामर्थ्य उनमें थी, वे उसे बीस वर्ष पूर्व ही पढ़ चुके हैं. उनके शरीर पर केवल ज्ञान का बोझ ही शेष रह गया है जिसके नीचे नित्य-प्रति वे दबे चले जा रहे हैं. अब वे सूफियों की भांति स्वयं ही किसी को ज्ञान दें तो बोझ कम हो और आचार्य किंचित हल्के हों. उन ज्ञानियों की भांति जिनके बारे में बचपन में सुना करते थे कि ज्ञान के अपच से वे बहुत परेशान रहा करते थे. परेशां भी इतने कि जब तक किसी सुपात्र पर उस ज्ञान को उड़ेल न दें उनको और उनकी आत्मा को किसी तरह भी शांति नसीब नहीं होतो थी. आचार्य भी इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि किसी तरह ज्ञान-दान करके उनके शरीर को आराम मिले. ........     


कोई टिप्पणी नहीं: