शनिवार, 28 जनवरी 2017

मेरे एक साथी अवकाश प्राप्त कर चुके हैं। पहले अध्ययन और अध्यापन में बहुत व्यस्त रहते थे। जब रिटायर्मेंट क़रीब आया तो कोशिश की कि सेवा विस्तार मिल जाए। उनको पता ही नहीं था कि सभी सहयोगी उनके रिटायरमेंट का बेक़ाबू से इंतज़ार कर रहे थे सो सेवा विस्तार दिलाना तो दूर बल्कि वश चलता तो दो-तीन महीने पहले ही छुट्टी पा लेते। ख़ैर सिस्टम आख़िर सिस्टम है। सेवा विस्तार न हुआ। रिटायर हुए तो लगा कि कोई काम ही नहीं रह गया। घर पर अनमने से रहने लगे। बात-बात पर नाराज़ हो जाते। कभी चाय को लेकर तो कभी खाने में कम-ज़्यादा नमक मिर्च को लेकर अक्सर पत्नी से झगड़ा हो जाता। मैं मिलने गया तो पत्नी ने शिकायत की। अब सबकुछ ठीक चल रहा है। कारण है फ़ेसबुक की दुनिया। पिछले महीने मैंने उनको रिटायरमेंट के रुपयों में से एक लैपटॉप खरीदवाया। उनका फ़ेसबुक अकाउंट खुलवाया। दो दिन तक उनको अभ्यास करवाया और उनका फ़ेसबुक प्रोग्राम धूमधाम से चल निकला। सबसे ज़्यादा ख़ुशी की बात तो यह है कि अब पत्नी से लडना बंद हो गया है। लडना तो दूर उनको किसी से बात करने और खाना खाने तक की फ़ुरसत नहीं है। मेरी मुश्किलें ज़रूर बढ़ गयी हैं। उनकी क्वेरीज जो आती रहती हैं। संतोष की बात है कि धीरे-धीरे और एक अंगुली से टाइप करते हैं। ईश्वर करे देर से सीखें। चलिए नया शौक़ है। जय हो।

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